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देवता: अग्निः ऋषि: वसूयव आत्रेयाः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

अ꣡ग्ने꣢ पावक रो꣣चि꣡षा꣢ म꣣न्द्र꣡या꣢ देव जि꣣ह्व꣡या꣢ । आ꣢ दे꣣वा꣡न्व꣢क्षि꣣ य꣡क्षि꣢ च ॥१५२१॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

अग्ने पावक रोचिषा मन्द्रया देव जिह्वया । आ देवान्वक्षि यक्षि च ॥१५२१॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ꣡ग्ने꣢꣯ । पा꣣वक । रोचि꣡षा꣢ । म꣣न्द्र꣡या꣢ । दे꣣व । जिह्व꣡या꣢ । आ । दे꣣वा꣢न् । व꣣क्षि । य꣡क्षि꣢꣯ । च꣣ ॥१५२१॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1521 | (कौथोम) 7 » 1 » 13 » 1 | (रानायाणीय) 14 » 3 » 4 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम ऋचा में जगदीश्वर और आचार्य से प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (पावक) पवित्रताकारक, (देव) प्रकाशक (अग्ने) अग्रनायक जगदीश्वर व विद्वान् आचार्य ! आप (रोचिषा) तेजोमय, (मन्द्रया) आनन्दप्रद (जिह्वया) वेद-वाणी के द्वारा, हमारे अन्दर (देवान्) दिव्य गुण (आ वक्षि) लाओ, (यक्षि च) और हमारे उपासना-यज्ञ वा शिक्षा-यज्ञ को सफल करो ॥१॥

भावार्थभाषाः -

वेदवाणी के माध्यम से परमेश्वर की उपासना करने से हृदय पवित्र होता है और गुरुमुख से वेदार्थ का अध्ययन करने से शिक्षा सफल होती है ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्रादौ जगदीश्वरमाचार्यं च प्रार्थयते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (पावक) पवित्रताकारक, (देव) प्रकाशक (अग्ने) अग्रनायक जगदीश्वर विद्वन् आचार्य वा ! त्वम् (रोचिषा) तेजस्विन्या (मन्द्रया) आनन्दप्रदया (जिह्वया) वेदवाचा। [जिह्वेति वाङ्नाम। निघं० १।११।] अस्मासु (देवान्) दिव्यगुणान् (आ वक्षि) आवह, (यक्षि च) अस्माकम् उपासनायज्ञं शिक्षायज्ञं वा सफलय च ॥१॥२

भावार्थभाषाः -

वेदवाङ्माध्यमेन परमेश्वरोपासनया हृदयं पवित्रं जायते, गुरुमुखाद् वेदार्थाध्ययनेन च शिक्षा सफला भवति ॥१॥